Tuesday, September 20, 2016

रज़िया को लगा चस्का

सारूक्खान डिटेंड अगेन- नाउ ही लॉव्स डेटेंशन


रज़िया एक मेहनतकश, चिर-यौवना, स्वतःस्फूर्त नर्तकी थी जो अपने भाव पूर्ण नृत्य और सहज उपलब्धता के लिए पूरे बौलिगढ़ में विख्यात थी। जैसा हर नर्तकी के साथ होता है, रज़िया के दामन पे भी कीचड़ उछाले जाते थे। पर रज़िया इन सब चिन्तन से दूर, पेशे में मशगूल रहने वाली थी। समय के साथ साथ उसने ढेरों मान सम्मान और दौलत इकठ्ठा कर ली। इस बात की खबर एंजिल्सगंज के डाकुओं को भी लग गयी। रज़िया के धन से ज्यादा उसकी जवानी के किस्से डाकुओं की नींद हराम किये हुए थे।

एक बार रात के कोई तीसरे पहर, एक महफ़िल से लौटते वक़्त रज़िया का दिल गाँव की स्वच्छ हवा में साँस लेने को हुआ... उसने गाड़ीवान करण को आदेश दिया और करण ने गाड़ी झोंक दी कच्चे रस्ते... गाड़ी कुछ ही आगे निकली होगी की घोड़े अचानक खिनखिनाते हुए दांत चियार के खड़े हो गए। रज़िया का दिल हुआ धक् धक्.... कुछ सोचती तभी पास की झाड़ियों से को 10-12 मुस्टंडे निकले। करण के हाँथ पैर फूल गए, झट से सरेंडर की मुद्रा में लोट गया। रज़िया ने थोड़ी कृत्रिम अकड़ दिखाई मगर डाकुओं ने अनोखी मगर चिर परिचित शर्त रखी... पहले डिटेन किया फिर मुजरा करवाया, और फिर कुछ ऐसा किया जिसके लिए रज़िया शहर भर में मशहूर थी। आज इन एंजल्सगंजी डाकुओं ने उसके हुनर को सराहना के साथ नहीं बल्कि अधिकार के साथ ग्रहण किया। रज़िया का दिल जो महफ़िल की वाह वाहियों से एकरस बंजर हो चला था उसको इन डाकुओं ने बलात् हल जोत दिया था। उसमे गुलाब के कुछ कटीले पौधे रोपे दिए। रज़िया को डाकुओं से इशक हो गया... डाकुओं को रज़िया से।

ये बात बौलिगढ़ में किसी दुर्गन्ध की तरह फैल गयी। पुरे शहर में रज़िया के लिए सहानुभूति की लहर दौड़ गयी और एंजेल्सगंज के लिए नफरत। एंजिल्सगंज के लिए तरह तरह से भर्त्सना पूर्ण तकरीरें की गईं। बौलिगढ़ में अब रज़िया के महफ़िलों की डिमांड तीनगुनी बढ़ गयी। गरीब लोग रज़िया की पुरानी रिकार्डिग देख के ही तस्सल्ली कर लेते। मगर उस रात के बाद से रज़िया खोई खोई सी रहने लगी। उसने अपने साथी और सारथी करण से व्यथा कह सुनाई। करण ने सुझाया की रज़िया को फिर से गाँव की ताज़ी हवा का सेवन करना चाहिए। रज़िया मान गयी... फिर गयी... फिर वही हुआ... फिर से बौलीगढ़ और एंजिल्सगंज आमने सामने... महफ़िलों की मांग में फिर से उछाल... बौलीगढ़ में रज़िया के लिए दीवानगी अब पगलहट की हदें पार करने लगा। इस प्रकार से रज़िया को गाँव की हवा खाने की लत लग गयी। इस चस्के से उसे चौतरफा फायदा होता... अब तो उम्र का भी असर नहीं पड़ता था धंधे पर... वो कहते हैं न विन-विन सिचुएसन।
हर हर महादेव
उजड्ड

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