Tuesday, September 20, 2016

विपश्यना

घर के पिछवाड़े कल्लू ने एक भैस पाल रखी थी। कल्लू का 7 वर्षीय बेटा मनीसवा उसे चंपा बुलाता है। चंपा मुश्किल से 2-3 महीने लगती थी (गाय भैस के परिपेक्ष्य में लगने का अर्थ दूध देने से होता है) फिर बिसुक (दूध दोहन काल का अंत) जाती। मगर एक दो महीने में फिर तैयार... साथी की तलाश में कल्लू का कुनबा सर पे उठा लेती। चिल्ला के रंभा के कूद कूद के गांव के बच्चे से लेकर बूढ़े तक से विनती करती की मुझे छोड़ दो, पी के मिलन को जाना है। एक तो पशु ऊपर से काम पिपासा... कुछ ही देर में वो खूंटा तुड़ा के भाग जाती... उसे पता था कहाँ जाना है... कल्लू वैसे अगर कभी चम्पा छुड़ा ले तो बहुत क्रोधित होता था... एक दो डंडे रख भी देता, मगर इस अवसर पे मन ही मन खुश होता। मगर मानीसवा इन बातों को समझने लगा था... उसे गुस्सा आता था..मानो उसकी सगी बहन भाग गयी हो और कुछ घंटों में मुह काला कराकर वापस आ जाएँगी महारानी। वो इतना रूठ जाता था कि एक दो दिन चंपा को नाद (अर्थात चारा/सानी पानी देना) भी नहीं लगता। मानीसवा की व्यथा कोई नहीं समझ सकता था... उधर चंपा पूरी तरह से फ्रेश और एनेरजेटिक मासूस कर रही थी ... मानो विपश्यना से लौटी हो... 


हर हर महादेव
उजड्ड

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