Tuesday, September 20, 2016

सर जी, फिल्म रिव्यू और वोटबैंक


किसी कामचोर या हरामखोर को देखा है? देखा ही होगा... वही जो हर बात के लिए दूसरों पे ऊँगली उठाये, कुछ न करे और बातें य्ये बड़ी बड़ी। सारी समस्याओं का हल झट से, प्लानिंग फट से... वगैरह वगैरह... इन सबसे बढ़कर एक अन्य लक्षण भी है। ये लौंडे फ़िल्मी होते हैं। हर फिल्म देखना, और अपने जीवन की हर समस्या का समाधान रुपहले परदे में खोजना...

धातु दोष से लेकर स्वप्न दोष और भ्रष्टाचार से लेकर बलात्कार, शिक्षा, लड़की, कैरियर, कुटैव-मुठैव, गे-लेस्बियन, ला टोमैटिनो, खाद्य संकट, भूख गरीबी, आत्महत्या, हत्या, ईर्ष्या, आतंकवाद, जातिवाद, विश्व ... आदि समस्याओं का हल ये पट्ठे फिल्मों मे खोजते हैं और पा भी जाते हैं... जैसे भ्र्ष्टाचार से लड़ने का क्लू नायक में अनिल कपूर ने दे दिया। बिजली का हल स्वदेश में सारुक्खान, भूख गरीबी में क्रिकेट खेल के लगान माफ़ करवाने वाला भुवन... अमीर न होते हुए भी अमीर लड़कों के साथ ज़िन्दगी जीने वाला दिल चाहता है का सिड... अनगिनत प्रेरणा स्रोत हैं भाई लोगों के। 

इनकी संख्या लाखों करोड़ों में है, ये युवा हैं... कम से कम अगले 10-15 साल तक... अथाह संसाधन है। इस पोटेंशियल को टैप, इस संसाधन का संदोहन कैसे किया जाय? ये विचार किसकी खोपड़ी में आया? जी हां दोस्तों, अपने छैला बाबू, युगपुरुष अरविन्द की अक्ल उस सतह पे चलती है जहाँ बालू कागज़ (sandpaper) के धुर्रे छूट जाएं। युपू IBUH दरअसल एक ऊँगली से एक ही बार में नाक के दोनों छेद साफ़ कर लेने वाले तिड़ी बाज हैं। उनकी महिमा या तो वो जाने, या अल्का जी या फिर उन CCTV कैमरों का आपरेटर।
तो साथियों सर जी कस के सिनेमा देखते हैं... और उन बदनसीबों को जिनका हाल ऊपर बताया गया है, की ज़िंदेगानी को संवारने के लिए अपनी समीक्षा देते हैं। कसम के सी बोकाड़िया की, युपू की सुझाई एक भी फिलिम पे अपने लौंडों का पैसा बर्बाद न गया आजतक।

मगर वो युगपुरुष ही क्या जो एक ऊँगली से एक बार में एक ही नासाछिद्र खोदे? इस अथाह मानव संसाधन को फिल्म देखने के काम में लगाने के अलावा सर जी फिलिम इंडस्ट्री में अच्छी पैठ बना चुके हैं... अब इस्टार लोग प्रोमोशन करने के बजाय सीधे दिल्ली के शाहंशा से मिलते हैं... बस हो गया काम। हिट गयी फिल्म। मदारी चल जायेगी... इसे कहते हैं रोज़गार पैदा करना। लड़कों के लिए फिल्म, फिल्मकारों के लिए दर्शक। कुछ तो सीखो मोदी जी, हांथपैर हिलाये बिना भी काम किया जा सकता है... नाहक सूट बदल के चकरघिन्नी काटते हो। खामखा फिल्म रिव्यू का मज़ाक उड़ान छोडो मोदी जी...

- उजड्ड

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