देख रहे हो पेड़ा गुरु! ई तन्मयवा को। रेवड़ी बाँट के राजा बन जाना चाहता है पट्ठा रातो रात... गर्दन के पिछले हिस्से को घसते हुए हांडी गुरु बोले। गारी गोन्हर का स्तर गिरा दिया लड़के ने।
उत्तर देने की हड़बड़ी में पेड़ा गुरु ने मुह के भीतर ही जिह्वा के नीचे वाले भाग में कटोरीनुमा पात्र बनाया, फ़ूड पाइप के मुहाने को मात्र इच्छाशक्ति से बंद किया, साँस की नली लगभग खुला रखा और पान की सारी पीक को उस कंठ रुपी कटोरे में इकट्टा करके (पेड़ा गुरु के मुह के भीतर घटी इस घटना को लिखने में भले ही 2-3 वाक्य खर्च हो गए हों, खुद पेड़ा गुरु को ऐसा करने में सेकेण्ड का सौवाँ हिस्सा ही लगा होगा) कों कों कर बोलने लगे - गुरु अभी सीख रहा है... थोड़ा टाइम लेगा। और अपनी इस बात के समर्थन में उन्होंने एक उदाहरण दिया जिसका अर्थ था की सीने पे बाल "अन्य" स्थान की तुलना में देर से आते हैं। अर्थात परिपक्वता आते आते आती है।
हांड़ी गुरु माथा सिकोड़ते हुए बोले। अबे उ बात नहीं है पेड़ा! उसका
इस्टैंडर्ड तो जिस दिन अस्सी पे आया उसी दिन ठीक हो जायेगा... दिक्कत इस
बात से है की उ लगता है माफ़ी मांगने। बताओ इतने साल तक हम लोग मंच पे माइक
लगा के होली के दिन और साल भर बिना माइक के चौराहे पे खड़े हो के गरियाते
रहे और हैं, आज तक किसी की औकात हुई की हम लोगों को दूह ले... कम बवाला हुआ
था जब मुलायम, मायावतीया, अटलवा, लालुवा, जयललिता, कासिरमवा इन सब को
गरियाया जाता था... पुलिस दरोगा क्या नहीं हुआ... उसको भी गरियाया गया।
यहाँ तक की सम्मलेन बंद करने की नौबात आ गयी लेकिन माफ़ी अपने बाप तक से
नहीं मांगी। ई साला माफ़ी मांग लेता है... पुंछ पिछवाड़े में दबा लेता है।
फिर हांड़ी गुरु गाली के दर्शन पे आ गए - भोला जानते हो, गाली मुक्त ह्रदय और साफ़ मन से दी जाये तो आनंद आता है... आत्मिक बल साथ रहता है। तन्मेवा पैसे और ख्याति के लिए करता है ई सब... इसलिए मजे से ज्यादा मातम फैलता है। और अगर पार्टी तगड़ी निकल गयी, जैसे बम्बई के ईसाई, तो उल्टा डंडा डाल के पलट देती है। फिर सियार की तरह मुंह से फेंचकुर (मृतप्राय जीव के मुह से निकलने वाला झाग) चुवाते हुए माफ़ी मांगते फिरो। गालीबाज को मुक्त होना चाहिए। मुक्ति, आनन्दित के हृदय की निवासिनी है कायर के ह्रदय की नहीं। तन्मय कायर है भोंस#@ का।
- उजड्ड
फिर हांड़ी गुरु गाली के दर्शन पे आ गए - भोला जानते हो, गाली मुक्त ह्रदय और साफ़ मन से दी जाये तो आनंद आता है... आत्मिक बल साथ रहता है। तन्मेवा पैसे और ख्याति के लिए करता है ई सब... इसलिए मजे से ज्यादा मातम फैलता है। और अगर पार्टी तगड़ी निकल गयी, जैसे बम्बई के ईसाई, तो उल्टा डंडा डाल के पलट देती है। फिर सियार की तरह मुंह से फेंचकुर (मृतप्राय जीव के मुह से निकलने वाला झाग) चुवाते हुए माफ़ी मांगते फिरो। गालीबाज को मुक्त होना चाहिए। मुक्ति, आनन्दित के हृदय की निवासिनी है कायर के ह्रदय की नहीं। तन्मय कायर है भोंस#@ का।
- उजड्ड
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