Tuesday, September 20, 2016

सौंधाहट


सौंधा जाना, अर्थात सौंधाहट का आ जाना। जैसे भूमि तपकार सूख जाती है, सौंधा जाती है...फिर वर्षा की बूँद पड़ने से सौंधी गंध बिखर जाती है। सौंधापन दिनचर्या से हटकर, उससे कुछ समय विरत रहकर अर्जित किया जाता है। गीली मिट्टी से सौंधापन नहीं निकाल सकते। जो तपा है वही सौंधायेगा। जिसने रूटीन से ब्रेक लिया वही सुगन्धित होगा। हमारे मोहल्ले में सौंधाहट का व्यक्तिगत प्रयोग है... जो नीचे व्यक्त है।

भोला गुरु को आजकल नियमित 7 बजे घाट पर पा कर हांडी गुरु ने संदेह की दृष्टि से पुछा - का गुरु आजकल सोन्हा (सौंधाहट के लिए प्रयुक्त देशज शब्द) रहे हो क्या...
भोला गुरु बस नाम के भोला थे, फट से तड़ लिए गुरु की मंशा। बोले - हांडी गुरु! हम आपके शब्दकोष से लेकर अंडकोष तक की थाह रखते हैं... हाँ सोन्हा रहे हैं... मेहरारू मायके गयी है।


हांडी गुरु ने यूरेका वाली मुद्रा में आते हुए कहा, वो तो हम आपके दृष्टि की चंचलता और ललाट का तेज देख के समझ गए थे। देखिये ये आवश्यक भी है। गृहस्थ जीवन में अल्पकालिक ब्रम्हचर्य लाभकारी है। इससे नीरसता का ह्रास होता है।
भोला गुरु अपने ऊपर हो रहे इस परिहास को मंटु गुरु पे फेंकते हुए बोले - तो गुरु ये बताइये की मंटु गुरु सोन्हा रहे हैं या नहीं?
सीढ़ी पे बैठे मंटु गुरु जो अबतक अप्रत्यक्ष वार्तालाभ ले रहे थे, अचानक अपना नाम लिए जाने से अब प्रत्यक्ष सुनने लगे... थोड़े भयभीत भी थे के आज चरित हनन होना है।


हांडी गुरु बोले - ऐसे चरित्रहीन बालकों की सोनाहट नापने में हमारा बैरोमीटर मत फूंको भोला। जिस दिन इनकी मेहरारू मायके जाय और इनके हाँथ काट के साथ लिए जाए उसदिन पूछना इनकी सोनाहट के बारे में। ये सोन्हायेंगे ससुर! ऐसे चंचल चित्त वाले गीले लोग कभी न सोन्हायेंगे। जिनको हांडी गुरु की बात समझ आई वो खी खी कर मंटु गुरु के मजे लेने लगे।


गुरु आगे बोले - कांग्रेस की हालात भी मंटु गुरु जैसी है... सत्ता चली गयी है, राज्य भी निकल गए है फिर भी सोन्हा नहीं पा रहे हैं जानते हो क्यों? 


प्रश्न भोला गुरु से था और उन्होंने निराश भी नहीं किया ... बोले - क्योंकि इनका चु. चिन्ह दाहिने हाँथ की हंथेली है। तुलसी घाट पे ठहाके गूंज उठे जो की की "हर हर महादेव" के साथ ही थमा। 



- उजड्ड

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