Tuesday, September 20, 2016

हाय हम छिड़ गए


एक बार एक सभा में जाने का जुगाड़ लगा। हम भी पहुचे अपनी मूछों के साथ। सभा तो जो थी सो थी ही, एक भाईसाहब ने एक विदुषी से मिलवाया। 35 की वर्तमान उम्र को धता बताने को ब्रह्माण्ड भर के लेपों ने उनको 28 का भले न बनाया हो मगर वो एक गच्च टनाका तरुणी की तरह चहक के मिलती थीं... गले लगाकर गदगद करतीं और ज्ञान का आदान प्रदान भी। मोहतरमा ने मुझे कुर्ते सदरी में देख कर मुझे गले नहीं लगाया जिसका मुझे आजतक क्षोभ है। कुशल क्षेम के बीच उनका सारा ध्यान मेरी मूछों पर ही था... आँखों में शरारत नाच रही थी उनके, जैसे ही उन्हें पता चला की यह निष्ठुर (मैं) आई टी से ताल्लुक रखता हूँ उन्होंने मेरी दुलारी मूछों पे हाँथ फेरकर अपनी भड़ास निकाल ली। और जोर से हंसने लगीं। मैं एकदम अव्वाक, हतप्रभ... परस्पर्श - आश्चर्य, शर्म, क्रोध, आनंद को एक साथ पटक के मेरे सीने पे चढ़ बैठा था... संज्ञा हाँथ लगते ही मैंने सकुचाते हुए कहा - जी एकदम बलत्कृत सा महसूस कर रहा हूँ... वैसे आपके हाँथ बड़े मुलायम और सुगंधित है... इन्हें यत्नपूर्वक रखियेगा...
मेरी धृष्टता पे... मोहतरमा ने बस थप्पड़ नहीं मारा... घूर के रह गयीं।
वो आबरू कुचले तो कोई बात नहीं।
हम क़दमों का सबब जानकार बदनाम हुए जाते हैं।

- उजड्ड बनारसी
हर हर महादेव

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