Tuesday, September 20, 2016

केला वन का लोकतंत्र


एक शेरनी थी... अपने शावकों के साथ केला वन में एकछत्र राज्य करती थी। शावकों के पिता या तो मर चुके थे या मरवा दिए गए थे... वैसे भी बिल्ली प्रजाति की मादाएं एक से अधिक नर रखती हैं, ताकि सब नर भ्रम में रहें कि बच्चों का असल बाप कौन है ... इससे उन नौनिहालों की प्रतिजीविता में वृद्धि होती है... यद्यपि यह तकनीक डार्विन के मुंह पर शेरनी के तिकड़मी बुद्धि का एक तमाचा है पर अपन को क्या...
केला वन में लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी थी। वन में सूवर, गीदड़, हिरन के साथ साथ गाय-बैलों का एक कुटुंब भी था... झुण्ड के बैल आम तौर पे अपनी इच्छा से जीवन जीने वाले, आगा पीछा न देखने वाले, प्रायः धिम्मी किस्म के जीव थे। संख्याबल में अधिक होने के बाद भी केला वैन के चुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा करते। इसी कारण शेरनी को इनका शिकार करने में सहूलियत होती थी। इन बैलों में एक सांड़ था... उसे केला वन पर शेरनी का एकाधिकार नहीं भाता था... कहने को तो शेरनी कभी कभी गीदड़ या लोमड़ी को भी केला वन का राजा बनवा देती मगर वास्तविक सत्ता उसी के पास रहती... यह बात सांड़ को भली भांति पता थी ...
कालान्तर में यह सांड़, गाय-बैलों का मुखिया चुना गया... बाद में वन का मुखिया बन बैठा। यह बात शेरनी की सत्ता के लिए खतरा थी। शेरनी ने गीदड़ों को पुचकार के आगे किया... गीदड़ खें खें करते हुए पुरे वन में चीखने लगे... "केला लोकतंत्र खतरे में है, सांड़ आततायी है"। एक दिन सांड़ भाई को एक खबर लगी की वन के केलो की तस्करी हो रही है... शेरनी पत्यक्ष रूप से सम्मिलित थी इस लूट में। सांड़ भाई ने शेरनी और उसके साथी लोमड़ियों पर जाँच बैठा दी... चूँकि केला वन में लोकतंत्र था, इसलिए विभिन्न सभाओं में इसकी चर्चा करवाई। चर्चा में शेरनी के पांव उखाड़ने लगे, सारे सबूत खिलाफ जा रहे थे... जंगल में थू थू होने लगी। शेरनी के बचाव का जिम्मा फिर से गीदड़ों और लोमड़ियों पे आ गया। इनको अनर्गल बोलने का और सुवरो को इनकी बात पूरे केला वन में फ़ैलाने का ठेका दिया गया... अनुबंध स्पष्ट थे, लूटना है और लूटते रहना है तो लुटेरन को बचाओ वरना हम तो डूबेंगे मगर तुम्हारे सर पे चढ़कर।
मगर जैसा की ऊपर चीख चीख के बताया जा चूका है की केला वन में लोकतंत्र था और जो की खतरे में भी था, ऐसे लोकतंत्र में किसी पाप को ढकने के लिए ढोंग करना पड़ता है। नव निर्वाचित गीदड़ प्रमुख ने एक नया शिगूफा छोड़ा जो केला वन के भावुक जानवरों के दिमाग में ऐसे घुस जाय जैसे गोबर में गुबरैला।
एक ढूहे पे चढ़ कर उसने जोर जोर से चीखना शुरू किया... "सांड़ कायर है, शेरनी से मिला हुआ है, अगर शेरनी वाकई में चोरनी है तो उसे कारागार में क्यों नहीं डालता"... सुवरो ने चिचियाते हुए ये बात पुरे केला वन में फैला दी।यह बात वन के जानवरों के कान से होते हुए दिमाग के गोबर में गुबरैले की तरह पेवस्त होने लगी... इसके दो फायदे हुए... एक तो ये की सांड़ भाई को बदनाम करने में मदद मिली, दूसरे ये के अगर शेरनी सचमुच बिना पूरी जाँच के गिरफ्तार हो गयी तो लोकतंत्र का खतरा चिल्लायेंगे, जिससे केला वन के जीवों के मन में लोकतंत्र के हंता सांड़ भाई के खिलाफ गुस्सा और शेरनी के प्रति सहानुभूति हो, यह बात लोकतंत्र में चुनावों के मद्देनज़र वरदान जैसी होगी।
कोई भी कहानी भूत में ही चलती है, वर्तमान छूते ही उसपर गतिरोध लग जाता है...अब यह कहानी भी वर्तमान को चूम रही है।
केजरी सर, इस केला वन में लोकतंत्र है। बिना जाँच पूरी हुए जेल में डलवा देने की बात कहकर आप उस गुबरैले वाला प्रयास कर रहे हैं। संविधान को चटनी की तरह चाट चुके युगपुरुष से हालांकि कोई पूछेगा नहीं, और यदि पुछा तो आप बोलेंगे नहीं मगर आपका क्या प्लान है? माता जी तो जेल जाने वाली हैं ऐसा प्रतीत हो रहा है... इसमें क्रेडिट लेने वाले वक्तव्य भी तैयार रखिये। गर माता जी फंस गयीं तो इसे अपनी ललकार का सुफल बता देना, और अगर बच गयीं तो लोकतंत्र की हत्या वाली बात तो हइये है। लोकतंत्र में जो दोनों तरफ से बोले वही सच्चा खिलाडी है, इसी को राजनीति का अमरसिंहवाद कहते हैं।

हर हर महादेव
- उजड्ड बनारसी

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