Tuesday, September 20, 2016

रबिश जी के नंगे खत


एम् जे अकबर (विदेश राज्य मंत्री) को खुल्ला... बोले तो एक दम नेकेड, वस्त्रविहीन पत्र लिख कर रवीश बाबू ने अपने नितम्ब (शरीर का वो अंग जिससे वो सोचने का काम लेते हैं) पे उगे नासूर को फोड़कर बहाने का काम किया है। दर्द तो बहुत हुआ मगर अब सारा मवाद बह जाने से उनको कुछ दिन के लिए आराम मिल गया है... वो क्या है कि जब साथी पत्रकार तरक्की कर चुके हों और आप लाख सेकुलरिज़्म, विक्टिमहुड, वामपंथ पेलने के बाद भी उसी रNDTV प्राइम टाइम पे ठीक आठ बजे कोठे पे बैठ रहे हो... आने वाले ग्राहकों में भी वही बासीपन है... तो क्या कुंठा पकते पकते नासूर न बन जायेगी... अब भड़ास किसपर निकालें... फोड़ दिया नासूर, लिख दी पीप से खुली पाती। 

मेरे एक मित्र कहते हैं कि रवीश जी में मैनहुड से ज्यादा विक्टिमहुड प्रबल है। रात को खटिया पे (सनद रहे वो आम पत्रकार हैं) पे निहायत व्यक्तिगत पलों में भी वो ऑर्गेसम् (स्खलन) से पहले पुक्का फोर के (पुरबिया शब्द जिसका अर्थ बिलख बिलख के रोने से है) रोते हैं... ताकि पार्टनर को रबीश जी संतुष्ट और सुखी न प्रतीत हों... मैनहुड में भले स्तंभन न हो पर मज़ाल है रवीश जी का विक्टिमहुड कभी सोया मिले...
मित्र ने तो यहाँ तक कहा कि रवीश जी ने अपने विक्टिमहुड को सेकुलर बनाने के लिए उसका खतना भी करवाया है... हालाँकि इस बात पे मुझे संदेह है... विक्टिमहुड की खाल होती ही नहीं... विक्टिमहुड तो पैदाइशी इस्लामिक है।

कृते
- उजड्ड

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