Tuesday, September 20, 2016

गोरों की खेती


गोरा साहेब के पास २५० एकड़ की खेती है... २५०... मतलब यूपी वाले लगभग ६०० बीघे... दिमाग घूम गया। फिर भी साला ये टुच्ची नौकरी करता है? यहाँ मैं ५ एकड़ पर इस गुलामी को लात मारने को तैयार बैठा हूँ... सौदा ही नहीं पट रहा और ये पट्ठा २५० एकड़ का कास्तकार इस आईटी की नौकरी में खामखा एक पोजिशन खाये बैठा है... नीचे वाले लौंडों की तरक्की रुकी पड़ी है इसकी वजह से।

तबादले के बाद संयुक्त राष्ट्र के मैदानी इलाकों को जानने का मौका मिला। खेती बांड़ी, गौ पालन की चुल रक्त में है... सो कौतूहल बना रहता है। यहाँ की खेती के बारे में बहुत कुछ सुना था... ब्रेड बास्केट की रूमानी छवि मन में थी ही। य्ये बड़े बड़े खेत... आँखे बूढी हो जाएं पर खेत का दूसरा छोर न दिखे। सिचाई, कीटनाशक छिड़काव, कटाई दवाई के एक से एक भसड़ उपकरण। एक अकेला आदमी ३०० एकड़ खेती संभल लेता है। 

चुल और बढ़ी। और करीब से देखा... और फिर सामने है बड़ा दुखदायी सच। अमरीकी ब्रेड बास्केट तबाह है। रसायन और कीटनाशकों से बर्बाद है। बंजर के कगार पर। मिटटी की जल धारिता ऐसी की एक स्क्वायर फ़ीट जमीन एक बच्चे का मूत सोख न सके। हर बीज GMO... मोनसेंटो पहले य्ये बड़े बड़े बम-पेल्हड़ जैसे आलू प्याज टमाटर, गेहूं , मक्के के बीज देता है, फिर उसको ज़िंदा रखने के लिए उनकी विशिष्ट खाद, फिर उन्ही का कीटनाशक... बाहर से कुछ लिया तो फसल टें। फिर जो पैदावार है, जिसे ये लोग पड़े प्यार से प्रोड्यूस कहते हैं... वो कौड़ी का तीन। न आलू में वो लसम, न प्याज में वो तेज़ी, न टमाटर में वो स्वाद... न लहसुन में वो जलन। सब नकली, सब प्लास्टिक जैसा... बेस्वाद... हाँ आकार य्ये बड़ा बड़ा... बम-पेल्हड़।

हाँ तो गोरा साहब से मुझे जरा जलन हुई... मतलब ६०० बीघा कुछ होता है भाई। तो सर आप क्या उगाते हो अपने इस टू फिफ्टी एकड़ में? साहब बोला - चारा, मेरे काऊ के लिए। मेरे शरीर के सारे बाल खड़े हो गए... आश्चर्य से स्वभावगत "भोsss...." निकलने ही वाला था कि मैं सँभालते हुए बोला - वॉव! सर आप ६०० बीघे का चारा कितने जानवरो को खिलाते हो? यही कोई १२० के आस पास। मेरे मन के द्वार कुंठा आकार बैठ गयी और दुम हिलाकर चिढाने लगी।

खैर, मैंने प्रयोग के तौर पे गमले में कुछ टमाटर, बैगन, खीरा, मिर्चा और गेंदा आदि के पौधे अपनी बालकनी में लागाये। इस शर्त पे की कोई कीटनाशक नहीं डालूंगा... देखूं इस मिटटी में कितनी जान है। कोई खाद नहीं। अगर मिला तो बस गाय का गोबर ही डालूंगा। साहब ने मदद की। मिट्टी के साथ साथ गोबर की खाद भी दी। आम अधेड़ अमरीकियों के तरह ही साहब भले आदमी हैं। पौधे लग गए, फूले भी, फल भी लगे परंतु बहुत कम। इन पौधों को वो नकली खाद की खुराक जो न मिली थी। इच्छा तो थी की गमलों में अगर ठीक ठाक सब्जी उगी तो साहब को एक दो नज़राना पेश करूँगा मगर वो हो न सका... सो मैंने साहब को उसकी फोटो भेज दी...
अगले दिन उन फोटो में से बैगन की देखकर साहब ने पुछा ... व्हाट इज दिस? मैं सन्न। ६०० बीघे के काश्तकार को ये पूछते लाज न आयी? मेरे मुह से फिर निकला "भोंssss" जिसे मैंने युक्तिपूर्वक "वॉव" में बदल दिया और जोड़ दिया कि "बैगन है साहब, लंबा वाला - एग प्लांट, ब्रिंजल"
साहब, तुम नौकरी ही करो, तुमसे न होगी खेती

उजड्ड
हर हर महादेव

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