Tuesday, September 20, 2016

अस्सी का भेंड़


सन् 90-91 की बात होगी... हमारे मोहल्ले में एक भेड़ा (नर भेंड़) कहीं से बहक आया था। बड़ा ही तगड़ा जंडइल भेंड़। मानव जीवन पर कोई प्रत्यक्ष असर तो नहीं पड़ा अपितु भदैनी से लेकर अस्सी वाया तुलसी घाट के कुत्तों में आतंक मच गया। कुतियों में घनघोर चिंता व्याप्त हो गयी थी...
बात यूँ थी की भेड़ भाई शौकीन थे। धारा 377 को अपनी सींग से उखाड़ फेंकने को आतुर। अब यहाँ अपनी बिरादरी का कोई दूसरा भेंड़ न मिलने से अपने जैसी आकृति वाले कुत्तों पे चढ़ जाता। हाइट भी वही... अंदाज़ भी वैसा। एक, दो तीन... करते करते बलात्कार को संख्या दर्जन में पहुँच गयी। कुत्ते हक्के बक्के रह जाते। हमला सीधे अस्मिता पे था। नाखून और दाँतों का पैनापन धरा का धरा रह जाता। भेड़ा जब देखो दबोच लेता। कुत्ते एक दूसरे से आँख न मिला पा रहे थे। कुछ कुत्ते तो इज़्ज़त आबरू बचाने पटरी बदल लेते। भेंड़वा अगर दाहिने पटरी है तो कुकुर भाई बाएं पटरी भाग जाते... एक दो बार रिक्शे के नीचे आते आते बचे... मामला सीधा था... जान दो या फिर वो दो।

पालतू पामोलियन तो बिचारे दरवाजे के भीतर से ही पीड़ा और अपमान का अंदाजा लगा लेते थे। सुस्सू पॉटी सब अब घर में ही होता... कौन बहार निकालकर मुह काला कराये।
इस्टेट बैंक के सामने बंसी पान वाला इन बलात्कारों का आंकड़ा रखता। बंसी ही एक प्रकार से उस भेंड़ केयर टेकर भी था। यदि कभी कोई भेंड़ को भागने या मारने दौड़ता तो बंसी बीच बचाव में आ जाते - जाए द गुरु, तोसे का मतलब हौ... ओनहने समझियन आपस में। पुरे मोहल्ले में चर्चा का विषय बन गया था भेंड़। झुन्ना गुरु बोले की सब लोग एक एक ठो लायसेंसी रिवाल्वर ले लो... काहे से की जो कुत्ता अपनी इज्जत नहीं बचा पा रहा है उ सुरक्षा का चाट के देगा।

उधर किशोरों के सम्मान को ठेस पहुँच रही थी...चाहे जो हो, कुत्ते हैं तो मोहल्ले के। लंका बियच्चु (BHU) वाले क्या समझेंगे। कल को ये बात अगर सनबीम सेंट जॉन्स के लौंडों को पता चल गयी तो मोहल्ले की नाक कट जायेगी... मंटु ज्यादा चिंतित थे। उनको अलग ही खतरा सता रहा था।

मंटु के बाबा श्रीमान नर्मदा तिवारी गाँव से गंगा नहाने आये, सायकिल से। और हर बार की तरह उनका रिप्पू साथ आया था। रिप्पू खेती बाड़ी की रक्षा के लिए पाला गया घर का ही सदस्य... जीव विज्ञान के हिसाब से कुत्ता था। लंबा चौड़ा चपल... उसके विशाल गलफड़ देखकर ही चोर उचक्कों की फट जाती, चोरी का इरादा पेशाब के रस्ते निकल जाता। जब 65 वर्षीय नर्मदा तिवारी सायकिल से बनारस गंगा स्नान को आते, रिप्पू पुरे 14 किलोमीटर लगातार साथ साथ दौड़ता । रास्ते भर के कुत्ते भौंकते पर 20 मीटर की परिधि के बाहर। रिप्पू ने यह सम्मान अपने पराक्रम और नर्मदा जी के स्नेह विश्वास की मदद से अर्जित किया था।

मंटु रोज की तरह 7 बजे उठे, बाबा स्नान ध्यान करके चौकी पे विराजमान थे। मंटु पैर छूने के लिए झुके ही थे की दरवाजे पर बैठे रिप्पू पर नज़र गयी। दिल बैठ गया। लगा की आज रिप्पू के साथ भी 377 का उल्लंघन हो गया। बाहर निकले रिप्पू ने पूँछ हिलाकर अभिवादन किया। सड़क पर गए तो कहानी उल्टी सुनी। भेंड़ भाग चूका था... उलटे पाँव लौटकर मंटु ने बाबा से पूछ लिया... सबेरे घाट किनारे कौनो भेंड़ दिखा था? नर्मदा तिवारी शांत भाव से बोले - हं एक ठे रहल, ना भगत रहल त रिप्पू ओकर गेगराँव धय लिहलन... घाटे घाटे शेवाले ओरी भाग गयल भेंड़वा। बाबा के लिए ऐसे एनकाउंटर आम बात थे सो उन्होंने व्याख्यान्न में अधिक दिलचस्पी न ली।
मंटु का सीन चौड़ा हो गया। मोहल्ले के कुत्ते धीरे धीरे इस घटना को भूलने लगे।

उजड्ड

हर हर महादेव

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