नर ने जोर से छींका, मादा ने अपने संतरे की फांको जैसे फुले, रक्ततप्त ओठों को आलस्य सहित उचारते हुए कहा - ब्लेस यु... ट्रेनिग कक्ष में समय कुछ पलों के लिए मानो ज़िदिया गया... आगे न बढ़ने की कसम खा ली टाइम भइया ने। खडूस मास्टर ने धकियाते हुए समय को ठेला और अध्यापन पुनः जारी किया... नर मादा की खुसर पुसर नियमित रही... जाते जाते दोनों ने साथ साथ मधुशाला जाने की योजना बनायीं... ये सब खड़े कानों से सुनते उजड्ड साहब की इन्द्रियां बेतहासा सिग्नल फेंकने लगीं...
आगे? आगे क्या हुआ उसके लिए उजड्ड संजय हुआ जाता है... हाँ तो मित्रों मधुशाला में स्नेह की परिणीति प्रेम में हुई, प्रेम से अगाध प्रेम, फिर कहीं रात्रि आश्रय, फिर चरम प्रेम... फिर प्रेम का स्खलन।
अगले दिन मादा और नर कक्ष में विकर्णवत बैठे... यथा संभव दूरी बनाये
हुए... उजड्ड साहब मुस्कुराते हुए बोले "ई तो स्साला होना ही था" और अपनी इन्द्रियों के आइय्यरी की मन ही मन
सराहना करने लगे ।
हर हर महादेव
- उजड्ड बनारसी
हर हर महादेव
- उजड्ड बनारसी
No comments:
Post a Comment