Monday, April 17, 2017

वैदेही वन जा रही क्यों कष्ट पाने के लिए

वन गमन से पहले माता कैकेयी से आशीष प्राप्त करने गयी वैदेही जानकी को माता कैकेयी आग्रह पूर्वक वन जाने से रोकना चाहती हैं परन्तु जानकी अपने निश्चय पर अटल है | उनके बीच के संवाद का कुछ अंश| बाल्यकाल में दादी से बहुत सारे भजन सुने थे। .. अत्यधिक भावुक हो कर गाती थीं... जितना गाती थीं... रोती जाती थीं ... इतना भाव प्रवीण गायन। उनके एक भजन की बस एक ही पंक्ति मुझे याद है ...
"वैदेही वन जा रही क्यों कष्ट पाने के लिए" | हमारी निकम्मी पीढ़ी ने उन अमूल्य भजनों को संगृहीत करने का तनिक भी कष्ट नहीं किया ...  बस उस एक पंक्ति के सहारे कुछ और वाक्य जोड़ने का प्रयास है |



कैकेयी --

है यहाँ प्रासाद का

वैभव पड़ा तेरे लिए

वैदेही वन जा रही

क्यों कष्ट पाने के लिए || १ ||

दास दासी नगर वासी

प्रस्तुत खड़े आठों प्रहर

क्या करोगी वन में बेटी

आकाश छत, प्रस्तर का घर || २ ||

पुष्प के पर्यंक पे

सोने से जो कुम्हला गयी

नींद आयेगी उसे

कैसे भला चट्टान पर  || ३ ||


वैदेही --

कष्ट क्या सुख क्या है माता

मन के दो आयाम है

श्री राम संग संघर्ष करने 

में परम कल्याण है || ४ ||

क्या करुँगी धन का

वैभव का बड़े प्रासाद का

राम के चरणों से बढ़कर

कौन सा सुखधाम है || ५ ||

जा रही हूँ मातु किंचित

शोक दुःख मत कीजिये

नियति का अवसर मिला है

धर्म धारण के लिए || ६ ||



No comments: