Tuesday, September 20, 2016

बानर कॉट इन एक्ट


लगभग सभी स्तनधारियों में से मनुष्य और बन्दर ऐसे हैं जिन्हें यदि कोई रति क्रीड़ा में लिप्त देख ले तो वो बुरा मान जाते है... बन्दर तो इतने क्रोधित हो जाते हैं की काट लें... काम करेंगे खुले आम... किसी की टंकी पे, नीम के पेड़ पर, छत की मुंडेर पर... कही भी, हर उस जगह जहाँ भोले भाले मानव की दृष्टि पड़ जाए। भोले मानव ने बस भोली सी भूल की.. बानर 'कॉट इन एक्ट"... बस बानर जी की सुलग जाती है... काम धंधा छोड़ के काटने को दौड़ जाते हैं... दुनिया का कोई भी जीव रति क्रीड़ा बीच में छोड़कर किसी को काटने, हिंसा करने नहीं दौड़ता... यहाँ तक के रति-रत किशोर श्रीमान मोहनदास गांधी अपने मरते बाप को देखने भी तभी गए जब क्रीड़ा समाप्त हो गयी... परबापू (बापू के बापू) शायद इसी सदमे से मर गए हों... खैर यह फैसला ठरकाधिकारियों पे छोड़ वापस संस्मरण पर आगे बढ़ते हैं... परंतु इतना तो स्पष्ट है की तुच्छ वानर गांधी जी के बताए रस्ते पर कत्तई नहीं चलते... मरकट कही के।

लोलार्क कुण्ड के उत्तर की ओर पीपल के वृक्ष के नीचे मुन्ना गुरु दुपहरिया छहाँ रहे थे। उनकी शालीनता की ख्याति घाट से लेकर सड़क तक थी। तुलसी और अस्सी घाट के अभिशप्त उजड्डों में शालीन होना एक दुर्लभ गुण है। वो भी तब जब बाकि के गुरु लोगों की तरह आप भी वही करते थे... कुछ नहीं। अब कुछ न करते हुए खुद में शालीनता गढ़ लेना अपने आप में रेंड़ (अरंडी का पेड़) से महल बना लेने जैसा है। मजाल है की मोहल्ले के लोग मुन्ना गुरु से कोई अपशब्द बुलवा लें... कोई हल्की बात करवा ले।

हाँ तो मुन्ना गुरु गमछे का बेंड़ुआ (कपडे से बनाई हुई तकिया) सर के नीचे लगाये भांग बुटी के विचार में मग्न अधखुली आँखों से नश्वर संसार को विरक्तिभाव से अनदेखा किये लेटे हुए थे की अचानक उनकी दृष्टि रति-रत बानर पे पड़ी... बानर की आप पर पड़ी। नैन मिले और ... खो खो खुर, कट खुर खो... ध्वन्यात्मक चेतावनियों से मुन्ना गुरु चेताये गए... पर मुन्ना गुरु अर्ध समाधी में बने रहे... हिले नहीं... बानर महराज ने गांधीरोधी कार्य किया... सब कुछ छोड़ छाड़ के दौड़ पड़ा खोंकते हुए... मुन्ना गुरु संकट निकट देख उठकर भागे... प्रयास में कुण्ड की सीढ़ी उतरने में गड़बड़ा गए... गोड़ (पैर) टूट गया।

प्लास्टर चढ़ाये जब शाम को बैठक में गुरु से पूछा गया... क्यों मुन्ना...अरे गोड़वा कहाँ डाल दिए गुरु? मुन्ना गुरु के मुह से पहली बार निकला... अरे ई बन्नर भों..... मुन्ना गुरु पूरा करते इसके पहले ही हर हर महादेव गूँज गया... अब मोहल्ले में कोई अपवाद न था... स्वयं मुन्ना गुरु भी शालीन न रहे।
हर हर महादेव

- कृते
उजड्ड

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