पिरतिया (प्रीती) को तीन दिन से जर (ज्वर, बुखार, फीवर) चढ़ा है, उतरने का नाम नहीं। साथ साथ बदन ऐसा टूटता था कि बिचारी रो पड़ती थी... तीन साल की मासूम आखिर कितना सहे। लालचन डाक्टर ब्रूफेन और काम्बिफ्लैम चला रहे हैं पर कोई असर नहीं। पिरती की अम्मा का दिल बैठा जा रहा है। चौरा माई (ग्राम देवी) से दो नरियर (नारियल) की मनौती मान चुकी है। पिरती के बाबू (पिता) को रामासरे चच्चा से सनेस भेज दिया है। पानी की पट्टी मिनट भर में भाप हो जाती थी... मारे घबराहट के ममत्व रो रो पड़ता था... न जाने घर की गुड़िया को किसकी नजर लग गयी थी। तीन ही फिन ओठ सूख गए थे, देवी के सामान बड़ी बड़ी आँखें छोटी, चेहरा निस्तेज हो चला था।
पिरती की दशा ने बबलुवा, जो ५ वर्ष का हो चला था, को जिम्मेदार बना दिया
था। २ दिन से वो खेलने नहीं जाता, पिरती को डाँटना तो कब का बंद हो चूका
था। बहन की बीमारी ने उसे अचानक ही वयस्क बना दिया। आज तीसरे दिन पिरती की
जिद पर अम्मा उसे बाहर वाली कोठारी में ले आयी। बिस्तर पे पड़े पड़े पिरती
बेहोश सी हो चली... अम्मा रो पड़ी, बबलुवा भी और बहादुरी न दिखा सका और माँ
से लिपटकर रो पड़ा। अम्मा आंसू पोछकर अंदर गयी ठाकुर जी के ताखे पे दीपक
जलाने।
बबलुवा बाहर आकर चऊतरे पे मूड़ी (सर) लटका बैठा गया। सर उठाया तो नहर के रास्ते फुवा आती दिखीं... "अम्मा! फुवा आई" की घोषणा करते हुए भगा नहर के रास्ते। गोड़ (पैर) छूने के बाद फट से फुवा की डोलची (टोकरीनुमा थैला) उठा लिया। फुवा की डोलची से उसे अगाध प्रेम और आशा रहती। डोलची में मिठाई होने की सभावना जो होती। रस्ते में ही बबलुवा फुवा को घर का हाल और पिरती की तबियत के बारे में बता चुका था। घर पहुँचते ही अम्मा लोटा में पानी और थाली लिए खड़ी थी। चरण धोने के बाद अम्मा ने पैर छुए। बैठने के लिए दालान में खटिया बिछाई पर फुवा बैठीं नहीं, सीधे पिरती के पास पहुचीं। देखते ही बोलीं - गुड़िया नजरिया गयी है। जो रे बबलुवा, ठाकुर जी के पास से धूप बत्ती की राखी ले आव। बबलुवा मानो जनता था कि फुवा यही कहने वाली हों... झट से ले आया। फुवा ने थोड़ी सी राख पिरितिया के मुह में दी, बाकी को उसके बदन पे रगड़ते हुए कुछ मंतर बुदबुदाने लगीं... जैसे जैसे मन्त्र पढ़तीं, वैसे वैसे जम्हाई लेतीं... लगभग २ मिनट में १५-२० बार जम्हाई लेने के बाद जब फुवा का अनुष्ठान ख़त्म हुआ, पिरितिया ने आँख खोल दी। फुवा बोलीं - बड़ी जोर नजर लगी थी... अम्मा "जीजी" कहकर फुवा के चरणों से लिपटकर रो पड़ीं... बबलुवा हैरानी से ये सब देखता रहा।
हर हर महादेव
उजड्ड
बबलुवा बाहर आकर चऊतरे पे मूड़ी (सर) लटका बैठा गया। सर उठाया तो नहर के रास्ते फुवा आती दिखीं... "अम्मा! फुवा आई" की घोषणा करते हुए भगा नहर के रास्ते। गोड़ (पैर) छूने के बाद फट से फुवा की डोलची (टोकरीनुमा थैला) उठा लिया। फुवा की डोलची से उसे अगाध प्रेम और आशा रहती। डोलची में मिठाई होने की सभावना जो होती। रस्ते में ही बबलुवा फुवा को घर का हाल और पिरती की तबियत के बारे में बता चुका था। घर पहुँचते ही अम्मा लोटा में पानी और थाली लिए खड़ी थी। चरण धोने के बाद अम्मा ने पैर छुए। बैठने के लिए दालान में खटिया बिछाई पर फुवा बैठीं नहीं, सीधे पिरती के पास पहुचीं। देखते ही बोलीं - गुड़िया नजरिया गयी है। जो रे बबलुवा, ठाकुर जी के पास से धूप बत्ती की राखी ले आव। बबलुवा मानो जनता था कि फुवा यही कहने वाली हों... झट से ले आया। फुवा ने थोड़ी सी राख पिरितिया के मुह में दी, बाकी को उसके बदन पे रगड़ते हुए कुछ मंतर बुदबुदाने लगीं... जैसे जैसे मन्त्र पढ़तीं, वैसे वैसे जम्हाई लेतीं... लगभग २ मिनट में १५-२० बार जम्हाई लेने के बाद जब फुवा का अनुष्ठान ख़त्म हुआ, पिरितिया ने आँख खोल दी। फुवा बोलीं - बड़ी जोर नजर लगी थी... अम्मा "जीजी" कहकर फुवा के चरणों से लिपटकर रो पड़ीं... बबलुवा हैरानी से ये सब देखता रहा।
हर हर महादेव
उजड्ड
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