बरसात, रथयात्रा का मेला और
सुलगते हुए कोयले पे सिकती
छोटी, सफ़ेद, भूरी और गहरी भूरी
नान खटाई ...
भीगे पिताजी ने
रेन कोट के अन्दर छुपाई
भीनी सौंधी
नान खटाई
कागज़ के ठोंगे से निकली ...
हल्की गरम
नरमा नरम
नान खटाई
माँ ने दो दो खिलाई
"बाकी मेहमानों के निमित्त"
कहकर फ्रिज में रखाई
नान खटाई
छोटकू ने आँख बचाई
ठन्डे दरवाजे के पीछे से
मुट्ठी भर उठाई
नान खटाई
3 मुह में, २-२ पॉकेट में
२-२ नन्हे हांथों में छुपाई
शीतल द्वार पे लात चलाई
नान खटाई
"भड़ाम" की आवाज से
माँ दौड़ी आई
चोरी पकडाई
नान खटाई
रुंधा हुआ गला
आँख से रुलाई
गप्पू जैसे मुह में चकनाचूर पड़ी
नान खटाई
मन के परदे के पीछे
आज भी यादों के कोयले पे सिकती
वही सफ़ेद, भूरी और गहरी भूरी
नान खटाई ...
-- उजड्ड बनारसी
हर हर महादेव
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