Tuesday, February 4, 2014

प्रपंच कथा ७


आज वसंत पंचमी के अवसर पर , मां शारदा के उन समस्त नव एवं पुरातन साधकों अभिवादन करूँगा जो अपनी प्रतिभा का प्रयोग किसी न किसी रूप में राष्ट्रहित में कर रहे हैं | पिछले कुछ दिनों में बहुत से ऐसे प्रचंड और प्रकांड सज्जनों से मिलना हुआ जिनके सानिध्य से बुद्धि हरिया गयी | कुछ बड़े हलकट टाइप के कलम योद्धा मिले, कुछ ने अपने वाणी वितान से हतप्रभ किया |

लेखन, अध्ययन, अध्यापन, पठन से ही सभ्यता की औकात पता चलती है | कोई सभ्यता कितनी वजनदार है इसका आकलन उसके कलमदारों की क्षमता से ही होता है |

आज के दिन अपने पूज्य गुरु श्री आनंद शंकर दवे जी को याद करूँगा जिनकी ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में जबरदस्त घुसपैठ थी | साहित्य से लेकर संगीत, संस्कृत से लेकर विज्ञान, कर्मकांड से लेकर गणित और सांख्यिकी ... अदिविशेश्वर मंदिर में उनकी बासुरी की गूंज आज भी सुन सकता हूँ, उनके द्वारा ३ विभिन्न रागों में गाये वन्दे मातरम अभी भी गुनगुनाता हूँ, उनके द्वरा सिखाई विधि से आज भी ज्यामिति सम्बन्धी समस्याओं का बड़े मजे से निस्तारण करता हूँ|

ये सब बाबा भोले नाथ की कृपा से संभव था | दवे जी अदिविशेश्वर मंदिर (बांसफाटक, वाराणसी) के प्रधान पुजारी थे| यह मंदिर "वर्तमान" काशी विश्वनाथ मंदिर का अग्रज है| कभी कभी मेरी ड्यूटी लगाती थी बाबा को स्नान कराने की और नगाड़ा बजाने की ... बड़ा मजा आता था | मंदिर के प्रांगण में ही श्रृंगार गौरी और सौभाग्य गौरी का भी मंदिर था | बसंत पंचमी के दिन बड़ी मात्रा में अमरुद आदि फल चढ़ावे में आता था | गुरु माता एक बड़े से टोकरे में फल लाकर हमें देती थीं | इतनी मात्रा में एक साथ इतना फल कभी नहीं खाया | आज भी मन सुवासित है |

अब सिर्फ स्मृति मात्र है| गुरु जी के अंतिम दर्शन न कर पाने का मलाल जीवन भर रहेगा | वसंत पंचमी के दिन वीणावादिनी के इस महाभक्त को करबद्ध नमन ||

हर हर महादेव

-- उजड्ड बनारसी

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