Sunday, May 29, 2011

सुलगते हौसले (भारत बनाम भ्रष्टाचार पर कुछ पंक्तियाँ )

जला दो ये नगमे, मिटा दो ये ग़ज़ले
ख़ुलुसों के नुस्खे मोहब्बत के किस्से
के मकसद नहीं ज़िन्दगी का मोहब्बत
सुदर्शन की बाते या ग़ालिब की नज्मे

तुम ही जाग जाओ, तुम ही आग लाओ
हो क्योंकर निक्कामों से तुम भाग जाओ ?
बदल दो इन्हें इनके जज्बों में भर दो
वो मंगल की हिम्मत , भगत का प्रभाव

हैं डर डर के जीती, सहम कर हैं चलती
ये नस्लें, ये कौमें, ये गलियां ये बस्ती
कहीं मिट न जाये निशान भी किसी दिन
ओ वतन के मसीहा, वतन के मुलाजिम

ये गाँधी, ये लाला निकलते तुम ही से
कलमाड़ी और राजा भी बनते तुम्ही से
जला दोगे तुम आशियाना किसी दिन
कसम है तुम्हे जो अबके न चेते