Saturday, January 17, 2009

गोदान -- मुंशी जी की अमर कृति

शायद मेरी औकात ही नही है की मैं इस उपन्यास की समालोचना कर सकूं। फ़िर भी मुंशी जी की सादगी मुझे इतनी पसंद है की बना कुछ लिखे नही रहा जाएगा।

गोदान, भारतीय किसान के उस मर्म को छु देती है जिसे केवल एक खेतिहर देहाती ही नही एक शहरी प्राणी भी महसूस कर लेता है। ग्रामीण परिवेश से जुड़े होने के कारण मैं इस उपन्यास के बहुत करीब आ गया हूँ। होरी , धनिया , गोबर , सिलिया , मेहता , रायसाहब , मालती आदि बहुत की जीवंत किरदार हैं। ऐसा लगता है की जीवन में कभी न कभी किसी न किसी रूप में ऐसे लोगों से मिल चुका हूँ या इनमे से कई किरदारों का मिश्रण मेरे अन्दर है. खासियत ये है की ऐसा महसूस करने वाला मैं इकलौता जीव नही हूँ।

होरी और धनिया के अलावा जिस पात्र के आगे मैं नतमस्तक हूँ वो है मालती का। मालती स्त्री के विकास को प्रदशित करती है। भोग से त्याग तक का विकास। मेहता और मालती का प्रेम प्रबुद्ध वर्ग के प्रेम का अद्वितीय उदाहरण है।

मातादीन और सिलिया का प्रेम, गोबर की किशोर सहज चेष्टाएँ, सोना और रूपा की बाते ... क्या नही है इसमें।
सहुवाइन , पटवारी , हीरा आदि अत्यन्त सजीव सहायक किरदार हैं।

धन्य हैं प्रेमचंद और महानतम हैं उनकी कृतियाँ।

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