( उरी हमले पर खौलते फेसबुकिया खून पे विवेक की कुछ छींटें)
एक बार कक्षा 11 के एक बच्चे को पढ़ाने का मौका मिला। हाँलाकि लखनऊ उन दिनों तेजी से अंग्रेजी मीडियम हो रहा था। फिर भी अभी कुछ लोग उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के बोझिल किंतु दमदार पाठ्यक्रम को ढो रहे थे। बालक को भौतिकी और गणित में समस्या थी... समस्या कुछ मित्रों से घुमते हुए हम तक आ गयी। जैसे की मरकही गाय को दूहने के लिए अनुभवी ग्वाल चाहिए, इसी तरह यु पी बोर्ड के लड़के अंग्रेजी मास्टरों के हाँथ नहीं लगते, उनको ठेठ संस्कार से सिखाना होता है। खैर बाकि सब तो ठीक था मगर लौंडे के बाप दारोगा थे। डर था कि मेहनताना मिलेगा भी या नहीं। फिर भी अपना भाग्य आजमाते हुए हमने लड़के को चेला स्वीकार कर लिया।
एक बार कक्षा 11 के एक बच्चे को पढ़ाने का मौका मिला। हाँलाकि लखनऊ उन दिनों तेजी से अंग्रेजी मीडियम हो रहा था। फिर भी अभी कुछ लोग उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् के बोझिल किंतु दमदार पाठ्यक्रम को ढो रहे थे। बालक को भौतिकी और गणित में समस्या थी... समस्या कुछ मित्रों से घुमते हुए हम तक आ गयी। जैसे की मरकही गाय को दूहने के लिए अनुभवी ग्वाल चाहिए, इसी तरह यु पी बोर्ड के लड़के अंग्रेजी मास्टरों के हाँथ नहीं लगते, उनको ठेठ संस्कार से सिखाना होता है। खैर बाकि सब तो ठीक था मगर लौंडे के बाप दारोगा थे। डर था कि मेहनताना मिलेगा भी या नहीं। फिर भी अपना भाग्य आजमाते हुए हमने लड़के को चेला स्वीकार कर लिया।
पढाई तो चलती रही, एक मास्टर के तौर पर मैं उसकी रूचि भौतिकी में जगा सका
यही मेरे लिए पर्याप्त था। लेकिन लड़के को एक दूसरी समस्या थी। उसका मोहल्ले
के किसी टीपू से पंगा हो गया था। टीपू साब निशातगंज के उभरते हुए सितारे
थे, बुधबाजार की वसूली टीपू के कन्धों पे थी। उसके ऊपर पढाई लिखाई का कोई
भार न था, और जिसके ऊपर ये भर न हो वो बहुत हल्का महसूस करता है, फिर
हलकेपन में उसके अनेक घनिष्ठ मित्र बन जाते हैं। पूरा एक गैंग खड़ा हो जाता
है।
तो हुवा यूँ के टीपू ने कभी गुठका खा के थूका होगा और उसकी छींट हमारे दारोगा जी के बेटा के पतलून पे गिरी होगी। दारोगा जी के लड़के का दम्भ हिल गया, गहमा गहमी हुई और राजा बेटा पिट गए। दोस्ताना सम्बन्ध होने के कारण लड़के ने हमसे आप बीती सुनाई ... हमने भी हांसिल पिच्चर के रणविजय सिंह की तरह फ्लैशबैक की पतंग उड़ाते हुए सारी घटना फट से समझ ली। हमने समझाया कि जाने दो, लड़का तैयार न हुआ। फिर हमने कहा, देखो बे गर्मी तो है तुम्हें लेकिन तैयारी क्या है तुम्हारी? मतलब कहने को तुम्हारे बाप दारोगा हैं मगर उनसे क्या मुह लेकर मदद मांगोगे। दारोगा जी का लड़का अगर पिट के आया है तो बदनामी किसकी है? पापा से तो कहना मत, न मदद मांगना, नहीं तो होगा कुछ नहीं ऊपर से दो पड़ाका खा के कंप्रोमाइज करके ठन्डे पंड़ जाओगे। तुम्हारी लड़ाई तुम्हारे बाप नहीं लड़ सकते। अच्छा सुनो, देखो सिर्फ टीपू को टारगेट करो, बाकि लड़कों की चिंता न करो, सिर्फ टीपू को चैलेन्ज करो और ई का बे, ई तुम्हारी बाइसेप काहे पिलपिला रही है, पहले जिम जाओ, 2 महीने बाद टीपू को चैलेंज... का समझे।
लड़के को एक बड़े भाई की शिक्षा समझ में आ गयी, अभी पन्द्रह बीस दिन ही हुए होंगे की टीपू भेंटा गया, लौंडे को ताव चटक गया, पेल दिस टिपूवा को वहीँ बीच चौराहे पे...
हाँ तो भाई किसका किसका खून गरम है, कौन कौन तैयार है बार्डर पार जाके पाकिस्तानियों को पेलने के लिए? ना ना, आर्मी न जायेगी। आर्मी सीधी लड़ाई लड़ती है, अगर छदम् लड़े तो उसका हाल कर्नल पुरोहित वाला हो जाता है। आर्मी न जायेगी, आर्मी को नहीं भेजना। वो लोग आर्मी थोड़े भेजते हैं। सरकार और आर्मी की मर्यादा है। वो खुले युद्ध में लड़ते हैं।
पाकिस्तानियों की आर्मी नहीं आती यहाँ हमले करने, उनके बहादुर जिहादी आते हैं... आप के गुदे में है दम, आर्मी लॉजिस्टिक देगी, ट्रेनिंग देगी। तैयार हो उनको उनकी भाषा में जवाब देने को? बोलो कौन तैयार है। बोलो कौन तैयार है खुद को उड़ा देने के लिए?
क्या कहा जुमले से परेशान हो? जुमले वाले ने एक के बदले बीस सर की बात की थी... गलत कहा था स्साले ने... वोट न देना उसको, उसी को देना जो 20 सर ले आये... मिले तो ठीक नहीं बत्ती बना के डाल लेना अपने बैलेट पेपर की। क्योंकि तुम्हारी सारी हेकड़ी उसी एक मुहर में है...
उजड्ड
हर हर महादेव
तो हुवा यूँ के टीपू ने कभी गुठका खा के थूका होगा और उसकी छींट हमारे दारोगा जी के बेटा के पतलून पे गिरी होगी। दारोगा जी के लड़के का दम्भ हिल गया, गहमा गहमी हुई और राजा बेटा पिट गए। दोस्ताना सम्बन्ध होने के कारण लड़के ने हमसे आप बीती सुनाई ... हमने भी हांसिल पिच्चर के रणविजय सिंह की तरह फ्लैशबैक की पतंग उड़ाते हुए सारी घटना फट से समझ ली। हमने समझाया कि जाने दो, लड़का तैयार न हुआ। फिर हमने कहा, देखो बे गर्मी तो है तुम्हें लेकिन तैयारी क्या है तुम्हारी? मतलब कहने को तुम्हारे बाप दारोगा हैं मगर उनसे क्या मुह लेकर मदद मांगोगे। दारोगा जी का लड़का अगर पिट के आया है तो बदनामी किसकी है? पापा से तो कहना मत, न मदद मांगना, नहीं तो होगा कुछ नहीं ऊपर से दो पड़ाका खा के कंप्रोमाइज करके ठन्डे पंड़ जाओगे। तुम्हारी लड़ाई तुम्हारे बाप नहीं लड़ सकते। अच्छा सुनो, देखो सिर्फ टीपू को टारगेट करो, बाकि लड़कों की चिंता न करो, सिर्फ टीपू को चैलेन्ज करो और ई का बे, ई तुम्हारी बाइसेप काहे पिलपिला रही है, पहले जिम जाओ, 2 महीने बाद टीपू को चैलेंज... का समझे।
लड़के को एक बड़े भाई की शिक्षा समझ में आ गयी, अभी पन्द्रह बीस दिन ही हुए होंगे की टीपू भेंटा गया, लौंडे को ताव चटक गया, पेल दिस टिपूवा को वहीँ बीच चौराहे पे...
हाँ तो भाई किसका किसका खून गरम है, कौन कौन तैयार है बार्डर पार जाके पाकिस्तानियों को पेलने के लिए? ना ना, आर्मी न जायेगी। आर्मी सीधी लड़ाई लड़ती है, अगर छदम् लड़े तो उसका हाल कर्नल पुरोहित वाला हो जाता है। आर्मी न जायेगी, आर्मी को नहीं भेजना। वो लोग आर्मी थोड़े भेजते हैं। सरकार और आर्मी की मर्यादा है। वो खुले युद्ध में लड़ते हैं।
पाकिस्तानियों की आर्मी नहीं आती यहाँ हमले करने, उनके बहादुर जिहादी आते हैं... आप के गुदे में है दम, आर्मी लॉजिस्टिक देगी, ट्रेनिंग देगी। तैयार हो उनको उनकी भाषा में जवाब देने को? बोलो कौन तैयार है। बोलो कौन तैयार है खुद को उड़ा देने के लिए?
क्या कहा जुमले से परेशान हो? जुमले वाले ने एक के बदले बीस सर की बात की थी... गलत कहा था स्साले ने... वोट न देना उसको, उसी को देना जो 20 सर ले आये... मिले तो ठीक नहीं बत्ती बना के डाल लेना अपने बैलेट पेपर की। क्योंकि तुम्हारी सारी हेकड़ी उसी एक मुहर में है...
उजड्ड
हर हर महादेव
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