दोस्तों, मैं निर्मल बाबा से मिला , संवाद के कुछ अंश प्रस्तुत हैं -
मैं - निर्मल दरबार की जय , बाबा जी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम | बाबा बहुत परेशान हू | सभी मुझसे नाराज हो जाते है | जिनके बारें में लिखता हूँ वो भी और जिनके बारे में नहीं लिखता वो भी (और ये कहते कहते, जैसा की प्रचालन है, मैं रोने का नाटक करने लगा )
निर्मल बाबा - लोगों अपमान करते हो ?
मैं - हाँ बाबा |
निर्मल बाबा - आखिरी बार किसका अपमान किया था |
मैं - बाबा फेसबुक पर एक पोस्ट में एक घनिष्ट मित्र का नाम नहीं लिया , सारी दुनियां का लिया मगर उसको दरकिनार कर दिया | बस हो गया अपमान |
निर्मल बाबा - किसी ने आग भी लगायी थी ?
मैं - नहीं बाबा आग तो मैंने ही लगायी थी | हाँ उसमे घी एक दुसरे घनिष्ठ मित्र में डाल दिया और पहला मित्र उसमे धू धू कर जल उठा |
निर्मल बाबा - एक काम करो, घी डालने वाली मंथरा का अपमान कर दो ... किरपा आनी शुरू हो जाएगी | वहीँ पर किरपा अटकी हुई है |
मैं - मगर बाबा मंथरा के बहुत सारे चाहने वाले हैं | अगर मंथरा का अपमान किया तो उसके सारे आशिक मेरे ऊपर भड़क जायेंगे ... तब तो सारी किरपा भित्तर, वहां (समझ गए न कहाँ ) चली जाएगी |
बाबा - उसके चाहने वालों में उसके competitor भी हैं, वो तुम्हारा सहयोग करेंगे |
मैं - पर बाबा, मंथरा के competitor तो विदेश में हैं
बाबा इतने पर भड़क गए और बोले -
बाबा - अबे चिरकुट, इन्टरनेट के ज़माने में देश और विदेश में विभेद करता है ... चल भाग यहाँ से , अभी बहुत लोगों की अटकी हुई किरपा चालू करनी है | कल्टी हो ले |
मैं - बहुत बहुत धन्यवाद बाबा | निर्मल दरबार की जय |
हर हर महादेव
-- उजड्ड बनारसी
No comments:
Post a Comment