Saturday, January 11, 2014

प्रपंच कथा - 3



दोस्तों, मैं निर्मल बाबा से मिला , संवाद के कुछ अंश प्रस्तुत हैं -

मैं - निर्मल दरबार की जय , बाबा जी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम | बाबा बहुत परेशान हू | सभी मुझसे नाराज हो जाते है | जिनके बारें में लिखता हूँ वो भी और जिनके बारे में नहीं लिखता वो भी (और ये कहते कहते, जैसा की प्रचालन है, मैं रोने का नाटक करने लगा )

निर्मल बाबा - लोगों अपमान करते हो ?

मैं - हाँ बाबा |

निर्मल बाबा - आखिरी बार किसका अपमान किया था |

मैं - बाबा फेसबुक पर एक पोस्ट में एक घनिष्ट मित्र का नाम नहीं लिया , सारी दुनियां का लिया मगर उसको दरकिनार कर दिया | बस हो गया अपमान |

निर्मल बाबा - किसी ने आग भी लगायी थी ?

मैं - नहीं बाबा आग तो मैंने ही लगायी थी | हाँ उसमे घी एक दुसरे घनिष्ठ मित्र में डाल दिया और पहला मित्र उसमे धू धू कर जल उठा |

निर्मल बाबा - एक काम करो, घी डालने वाली मंथरा का अपमान कर दो ... किरपा आनी शुरू हो जाएगी | वहीँ पर किरपा अटकी हुई है |

मैं - मगर बाबा मंथरा के बहुत सारे चाहने वाले हैं | अगर मंथरा का अपमान किया तो उसके सारे आशिक मेरे ऊपर भड़क जायेंगे ... तब तो सारी किरपा भित्तर, वहां (समझ गए न कहाँ ) चली जाएगी |

बाबा - उसके चाहने वालों में उसके competitor भी हैं, वो तुम्हारा सहयोग करेंगे |

मैं - पर बाबा, मंथरा के competitor तो विदेश में हैं

बाबा इतने पर भड़क गए और बोले -

बाबा - अबे चिरकुट, इन्टरनेट के ज़माने में देश और विदेश में विभेद करता है ... चल भाग यहाँ से , अभी बहुत लोगों की अटकी हुई किरपा चालू करनी है | कल्टी हो ले |

मैं - बहुत बहुत धन्यवाद बाबा | निर्मल दरबार की जय |

हर हर महादेव

-- उजड्ड बनारसी

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