Sunday, June 8, 2014

वर्षा

कनपटी से बहती स्वेद को
जब पूर्वा सहलाती है
ठंडी सी सिरहन
रीढ़रज्जु में लहराती है
मेरी मिटटी मेरी माँ !
मुझे तेरी याद आती है ॥

खेतों की तपती सतह को जब
वर्षा छौंकती बघारती हैं ।
खलिहान में बैठी गइया जब
भींगती रंभाती है ।
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

दालान में फिसलते बच्चे जब
रोते रोते नाक पोछते हैं
दादी छत पे सूखने पड़े कपड़े
 ले आती है
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

चारपाई की सुतलियों के बीच 
ठंडी मलय गुलाटी लगाती है।
खपरैल की छत से जब
२-४ बुँदे रिस जाती हैं
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

अध-भींगा कुत्ता जब
आस पास गंधाता है ।
चतुर बिलैया गौखे से जब
नीचे उतर आती है ॥
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

परनाले बहते उबहते
जब पगडण्डी छुपाते हैं
जामुन की डाली जब
कुछ और लटक जाती है
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

आमों की चोपी जब
मुह घायल कर देती है
उस फल को खाने होड़ जिसे
कोयल जुठार जाती है
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

सायकिल के पहियों से पानी उड़ते देख
पगडंडी पे बैठे बच्चों की ताली बज जाती है
मडगार्ड में कीचड फंसने से फिर
गति धीमी हो जाती है
मेरी मिटटी मेरी माँ
मुझे तेरी याद आती है॥

… अधूरा


* चोपी - ताजे देशी आम से निकलने वाला एक कसैला द्रव जो मुह पे लगने से घाव कर देता है
* जुठारना - जूठा कर देना । ऐसी मान्यता है की कोयल मीठे वाले आम को जूठा कर देती है
* गौखा - रोशनदान जैसा एक कोष्ठ जो दीवार में बना हो ।
* दालान - आँगन



उजड्ड बनारसी

No comments: