दिनकर जी ने रश्मिरथी के माध्यम से काव्य की ऐसी सड़क बना दी है जिसपर मेरे जैसे सड़क छाप टट्टू भी सरपट दौड़ने लगते हैं | ये पंक्तियाँ मुझ एकलव्य की गुरु द्रोण सामान रामधारी सिंह जी के पुण्य चरणों में समर्पित |
इस धर्म युद्ध की बात कहूं,
इस मर्म युद्ध की बात कहूँ
इसमें कोई निरपेक्ष नहीं,
इसमें केशव प्रक्षेप नहीं||
योद्धा के सम लड़ना होगा,
हे कर्ण तुझे मरना होगा |
मित्रों के हत का भान नहीं,
कब कौन मारा यह ध्यान नहीं||
छल-युद्ध, बड़ी इसमे चतुराई
रामायण काल की तड़का आई|
शर में झाड़ू के तिनके हैं ||
ये टोपी वाले किनके है ?
सब गड्ड मड्ड है हे केशव
सब मिला जुला सा है केशव
क्या बढेगा भारत वैभव
या बिछेंगे नर-नारी के शव ||
हे पार्थ यहाँ पर मित्र कहाँ
देखो उनमे बंधुत्व कहा ?
सब घात लगाये बैठे है
बस कलह मचाये ऐठे हैं ||
तुम कर्म करो, संधान करो
तड़का हनन का ध्यान रखो |
वो "जाति" पकड़ कर बठे है
तुम "धर्म" सम्मुख विधान करो ||
हर काल में घातक आते हैं
हर बार पराजय खाते हैं |
इनकी रक्षा के हेतु, पार्थ !
ये टोपी वाले आते हैं ||
इनमे कोई गुण धर्म नहीं
इनके कोई सत्कर्म नहीं |
खाली के खाली अन्दर से,
ढोंगी हैं ये, नर - आम नहीं ||
ये तब भी उतने झूठे थे
अनशन पर जब जा बैठे थे|
बिजली अब भी महँगी है
देखो पानी की तंगी है ||
हे पार्थ इन्हें मत नर जानो
किन्नर हैं ये अब पहचानो |
स्वराज के करतल नाद किये
मिलने पर जिम्मा, भाग गए ||
इनका नेता भगोड़ा है
हर काम अधूरा छोड़ा है |
ऐसे राष्ट्र घातियों ने, इस
युद्ध का मुख कुछ मोड़ा है ||
कौन्तेय मगर यह ध्यान रहे
हर शस्त्र लक्ष्य संधान करे
माया, छल, बल, सब साधन हैं
हो धर्म विजय यह ध्यान रहे ||
-- उजड्ड बनारसी
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