पड़ोस के पनारू चच्चा और मुन्ना चच्चा आपस में पट्टीदार थे | मुन्ना चच्चा रौले वाले थे | बैठकबाजी में उनका कोई सानी न था | समाजवाद और साम्यवाद के थेथर समर्थक | अर्थनीति लगभग शुन्य थी | इनका जीवन पिता जी के बनवाए माकन और पनारू भैया की लगवाई हुई नौकरी से चल रहा था | पनारू चच्चा की रिश्वत देकर लगवाई नौकरी को मुन्ना चाचा अपना भाग्य समझते थे | मुन्ना चच्चा ने कभी शिक्षा जनित प्रतिभा को मुह नहीं लगाया था |
पनारू चच्चा खांटी संघी थे | अर्थोपार्जन को विकास से जोड़कर देखते थे | अपने पान की दुकान से जो भी कमाया उसका प्रयोग कुटुंब के विकास में ही किया | अल्गौझी के बाद मुन्नावा के बागी हो जाने से व्यथित थे पर मस्तक पर हमेशा संतोष का भाव रहता था |
साम्यवादी मुन्ना चच्चा सबको चोर कहते थे |एक दिन एक लालजी पनवाड़ी के यहाँ मुलाकात हो गयी | मैंने चिर परिचित तरीके से “हर हर महादेव” (काशी का विश्वविख्यात अभिवादन) किया तो बड़ी हिकारत भरी नज़र से बोले “पड़े रहो” | मन ही मन मैंने कुछ उच्चारित किया जो ‘भ’ से प्रारम्भ होता है | चच्चा रुके नहीं, बोल ५०० करोड़ आया है खाली घाट की मट्टी बहाने के लिए | अरे इ मट्टीया तो फिर अगले साल बाढ़ में आ जाएगी | इन लोगों से यही पैसा बेरोज़गारी भत्ते में नहीं दिया जाता | मैं समझ गया की चच्चा साफसुथरे घाटों पर आने वाले पर्यटकों को टके का चुतिया समझते है | और इससे होने वाली आमदनी को पूंजीवाद | मैंने पुछा चच्चा राजुवा कहाँ है | चच्चा भू स्तर पर आ गए | ‘भ’ से शुरू होने वाले चिरपरिचित शब्द के साथ उन्होंने ने कहा - कहाँ होगा, रोटी तोड़ रहा है (फिर से वही ‘भ’...) घर में बैठ के, जादो या मियां तो है नहीं की लैपटॉप ले आये , भत्ता मिले |
तभी पनारू चच्चा रोली बिटिया के साथ स्कूटी पर दिखे , इसबार मुझे हर हर महादेव का जवाब , दुगनी तीव्रता की प्रतिबिंबित ध्वनि से मिला | बिटिया छुट्टी में आई है और पनारू चच्चा के लिए एक स्कूटी ले ली है | अब पनारू चच्चा बिना नागा के संकट मोचन, दुर्गा जी जाते हैं |
बस ख़तम हुई कथा, जिसको समझ में आया वो ताली बजाओ, जो नहीं समझे वो कपार खाजुवाओ |
हर हर महादेव
-- उजड्ड बनारसी
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