मेरे विचार से कविता एक ऐसा रहस्य है जिसे लिखने वाला भी समझा नही सकता। पढने वाले उसका १०% मात्र समझ सकते हैं... शायद कुछ परखी इससे ज्यादा का दावा करते हो।
गहरी थी ह्रदय पर भावनाएं...
अनूदित कल्पनाएँ, बहरी वासनाएं ...
चक्र जीवन का समझते तुम थे जिसे...
थी वो बस कुछ स्वार्थ लिप्साएं ।
सीखने की चीज़ है क्या ये अहसास...
जो करते प्रयोग थे तुम ?
क्या यह प्रेरित उद्दीपन था ...
या थी परिवर्तन की नव दिशाएं ?
इस ऊहापोह में क्यों नष्ट हुए जाते हो
क्यों कहकर कवित्त में और रहस्य बढाते हो
मिलेगा क्या भावनाओं के तंत्र रचकर
हैं तो बस ये तुम्हारी कपोलित कल्पनाये .
हो गए तो गूंगे तुम
न कर सकोगे पराजय का आह्वान
घिन्न आती है तुम पर, तुम्हारे कर्मो पर हे अश्वत्थामा
ठीक ही तो बहती हैं तुमसे कोढ़ की धाराएँ ।
कुछ पापों का परिमार्जन तय होता नही ...
और तुममे तो प्रयाश्चित का भी दम नही ...
बस सड़ते रहो तिल तिल पश्च्य्ताप में,
प्रराब्द्ध यही है तुम्हारा
मरने से कुछ क्षण पहले का सा जीवन
जीते रहो और बनो उदहारण
न फ़िर ये भूल कोई और दोहराए.
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