Sunday, July 20, 2014

V जॉन डीयो


क्या दृश्य है ... महिला के लरजते हुए हाँथ से, V जॉन की शीशी, रचनात्मक, "रस"नात्मक और कामुक सहलावन पा कर, उत्तेजित हो जाती है ... शीशी का स्तम्भन बढ़ता जाता है देखते ही देखते मीनार में तब्दील हो जाती है... उत्तेजना के शिखर पर शीशी का ढक्कन खुला और शीशी का स्खलन .... 

यही दिखाना चाहते थे न साहब ... लो मैंने आपके विज्ञापन की रिवर्स इंजीनियरिंग (आईटी वालों का बड़ा चहेता शब्द है ... ऐसे इस्तेमाल करते हैं जैसे गेंदबाज़ रिवर्स स्विंग का ...) करके पटकथा लिख दी, मुझे नहीं मालूम ओरिजिनल पटकथा से कितना मेल खाती है पर दावे के साथ कर सकता हूँ की मजमून यही रहा होगा ...

देखो यार, छिछोरापन अपनी जगह है ... पर कायरता नहीं ठीक है | अपने अपने कमरे में सभी होंगे छिछोरे ... लेकिन जब तुम लोग विज्ञापन बना रहे हो तो खुल के बनाओ ... अब आगे की पटकथा हमसे सुनो ...

हाँ तो शीशी के स्खलन के फलस्वरूप जो द्रव निकला उसे अपने बदन में चिपोड़ के जब लौंडा मार्किट में निकला तो बच्चे से बुज़ुर्ग तक सभी स्त्रियाँ पिलई (कुतिया का ग्रामीण संबोधन) के माफिक लसने (लस्टफुल इस्माइल का कनपुरिया संस्करण) लगीं| यही नहीं V जॉन साहब के शुक्र द्रव्य के गंध से चौराहे पर ताली पीटने और धारा ३७७ वाले भी आकर्षित हो जाते है ... लौंडा भी सभी से लब्झाने (लसने के बाद जो नेक्स्ट स्टेप होता है उसका कनपुरिया नामकरण) लगा ... उह आह उम्ह की सिस्कारियां आने लगीं ... जो धीरे धीरे "अरे माई रे" ... "नोच लेहलस" ... "उपार लेहलस" में तब्दील हो गयी |

तो देखा V - जॉन साहब के शुक्र द्रव्य का कमाल ... एक बार पोत लीजिये देहीं में ... बिगहन (१ बीघा = २० बिस्वा, १ बिस्वा = १३५० वर्ग फीट लगभग) बस्सायेगा|

हाँ तो भाई अब कौन कौन खरीदने वाला है V जॉन साहब का शुक्र द्रव? क्या कहा समय ख़राब है? ... हर सेकेण्ड बलात्कार हो रहे है? ... हट पगले ... मुझे संस्कार ना सिखा | कोई क्लिप हो तो वो दिखा ... नहीं तो मैं चला मस्तराम टाइम्स ... एक्सक्यूज़ मी ... टाइम्स ऑफ़ इण्डिया पढने ... बड़ा रसीला अखबार है ... ५ रुपये में पूरा मज़ा |

उजड्ड बनारसी

हर हर महादेव

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