मात्रि भाषा में लिखने के लिए मन में बड़े दिन से कुबुलाहट हो रही थी। आप मानिये ना मानिये जो सुकून हिन्दी लिखने बोलने पढने में आता है वो बात अंग्रेजी भाषा में नही है। मेरे अति व्यस्त और अंग्रेजियत पसंद दोस्त शायद इस बात से इत्तेफाक न रखते हो। मैं कुछ साबित नही करना चाहता। ये तो बस मेरा मेरे माजी को नमन करने एक तरीका है जो की मैं अंगरेजी के मध्यम से नही प्रर्दशित कर सकता था।
पिछले दिनों मैं अपने मित्र निशांत के घर गया था। वह मैंने यह पुस्तक देखी। शीर्षक बड़ा रोचक लगा "मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था।" मैं उसे घर ले आया। इतना उत्सुक था की सुबह ८ बजे से दोपहर ४बजे तक बिना कुछ खाए पढता रहा। और बाद में मोहनलाल भास्कर के बारे में सोचता रहा इसलिए कुछ खा न सका।
पुस्तक एक जासूस की आत्मकथा कही जा सकती है। उसके जीवन में सही गई कठनायियाँ आखों के आगे तैर जाती हैं। एक सच्चे देशभक्त होने और देशभक्ति की बात करने की बीच जो फासला था वो इस पुस्तक को पढने के बाद जाता रहा।
ये आत्मकथा जासूस के जीवन की समस्याओं के साथ साथ तत्कालिन पाकिस्तान के सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य का भी बड़ी सफलता से उल्लेख करती है।
यदि मेरे कारपोरेट भाइयों को जरा समय मिले तो भारत माँ के इस सपूत की कहानी को पढने की जहमत उठा सकते है। शायद ये हेर्री पोटर की कहानियो से ज्यादा अहम् स्थान रखती है हमारे जीवन में।
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1 comment:
Kuchh takniki samasya ke karan Devnagri men nahin likh pa raha hoon. Kshama prarthi hoon. Ya pustak wakai bahut rochak hai aur utni hi gyan wardhak bhi. Aaj ke kisi Bhartiya ke liye yah upayogi hai kyonki Pakistan aur usse hamare rishton ko samajhne men, apni raay banane men bahut madadgaar hai. Swayam mere upar to yah prabhav pada ki maine ab yah manne laga hoon ki majhab ya desh se bhi aham hai insaaniyat... har majhab aur desh men achchhe aur bure log hain. Aur ek baat aur, Mohan Lal Bhaskar aur unke jaise goomnaam par sachche deshbhakton ko pranaam... desh unki parwaah nahin karta, fir bhi woh jiwan bhar atyachaar aur peeda sahte rahte hain.
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