पूज्य आचार्य रजनीश 'ओशो' कहा करते थे कि हर कहानी झूठी है, रचनाकार द्वारा अपनी विचारधारा को प्रचारित करने का छद्म अर्थात प्रोपगंडा | जैसे ही विचारधारा का मंतव्य समाप्त, कहानी समाप्त | इसलिए प्रायः सभी कहानियां अधूरी हैं, कुछ कहती हैं, कुछ नहीं कहती है ... बात दबा ले जाती हैं | असली कहानियां सतत होती हैं ... अंतहीन |
सिंध के गाँव और मंदिर लूटकर अरबी लुटेरों का एक गिरोह एक पहाड़ी के पास आकर रुका | हर लुटेरे के साथ दो घोड़े, एक पर वह खुद बैठा था और दूसरे पर लूट के बहुमूल्य आभूषण, स्वर्ण, माणिक्य, देवी देवताओं की धातु मूर्तिया आदि लादे गए थे | सबसे आगे वाला लुटेरा जो कि संभवतः गिरोह का सरगना था, मुड़ा और बाकि लुटेरों के सम्मुख हो बोला - "अल्लाह के नेक बन्दों, इतनी दौलत अल्लाह ने मुशरिकों को इसलिए अता की थी के एक दिन अल - ईमान के हम नेक बन्दे इसे अपने नाम कर सकेँ | पर सनद रहे , अल - किताब की आयत 8:69 कहती है की काफिरों मुशरिकों से लड़कर जीते हुए असबाब पे हकूक हम सबका है, हम सब का बराबर का अख्तियार है | इसलिए आओ ये सारा माल इस जादुई दरवाज़े के पीछे रखकर हम पहले अपने साथ लूटकर लायी लौंडी और लौंडों की खिदमत कबूलें | अगली जुम्मेरात को इस दौलत का बटवारा किया जायेगा" | फिर अपनी तलवार उठाकर चीखते हुए बोला "नारा-ए -तकबीर" ... पीछे ४० घुड़सवार लुटेरों ने तामीर करते हुए - "अल्लाह हु अकबर, अल्लाह हु अकबर " | फिर सरगना पहाड़ी में बने एक दरवाजे की तरफ मुड़ा और जोर से बोला - "खुल जा सिमसिम" -- घरघराते हुए दरवाजा खुला और सभी लुटेरे अन्दर चले गए | फिर अन्दर जाकर सरगना बोला "बंद हो जा सिमसिम" | लूट का सारा माल अन्दर रखकर लुटेरे बाहर आये, दरवाजे को उसी अंदाज़ में बंद करके पास के एक गाँव में सिंध से लूट कर लायी लड़कियों , महिलाओं और बच्चो का भोग करने चले गए |
ये सारी घटना पेड़ के पीछे छुपा अली बाबा देख रहा था ... दिन भर लकड़ियाँ बटोरने वाला अलीबाबा इतनी अकूत संपत्ति देखकर पागल सा हो गया ... तभी उसे पवित्र कुरआन की ज़कात सम्बन्धी आयतें याद आने लगीं | उसने सोचा की क्यों न इस लूट के माल पे इस गरीब का भी हक हो | घर जाकर उसने ये सब अपने परिवार से बताया ... फिर इस लूट के धन को चुराने की योजना बनाई और उसपर अमल भी किया | पर ये बात लुटेरों को पता लग गयी ... लुटेरों ने अलीबाबा को मारने की योजना बनाई | पर यहाँ अलीबाबा के काम आई फारस/ईरान की लौंडी मरजीना |
मरजीना एक जोरो लड़की थी | फ़ारस (आज का इरान) में इस्लाम के आक्रमण से पहले जोरो सभ्यता फली फूली थी ... जोरो लोग भी काफिर मुशरिक थे, सूर्य के उपासक थे, बड़े आजाद ख्याल और ज्ञानी लोग | आज यदि अरबी किसी ज्ञान-विज्ञान पे अपने पूर्वजों का हक जताते हैं तो वो उनके पूर्वजों का नहीं बल्कि इन्ही जोरो और भारतीय मुशरिकों का ज्ञान - विज्ञान है |
अल - मज़हब इस्लाम के अल जिहाद के आगे जोरो लोग ५० साल भी न टिक सके, धुल में मिल गयी जोरो सभ्यता ... वहीँ से लूटकर आई लौंडियों में से एक लौंडी की तीसरी पीढ़ी थी मरजीना... बड़ी चालक थी, उम्र में अलीबाबा की बेटी जैसी पर बला की कमसिन | अलीबाबा उसपर अपनी जान छिड़कता था , हर काम उससे पूछकर ही करता था |
मरजीना ने लुटेरों से निबटने की योजना बनाई| उसने अपने जलवे दिखाकर लुटेरों को नशा दिया फिर खौलता हुआ तेल डालकर उन्हें मार दिया | अलीबाबा खुश हुआ , सारी संपत्ति उसकी हुई | साथ ही लुटेरों द्वारा लायी गयी नयी सिन्धी लौंडिया और लौंडे भी मिले ... सो अलीबाबा ने फारस की उस कनीज़ मरजीना का अपने पुत्र के साथ निकाह कर दिया ... वेश्या से भी बदतर जीवन जीने वाली मरजीना को और क्या चाहिए था ... यह सम्मान पाकर वह कृतकृत्य हुई |
इसप्रकार सिंध के काफिरों मुशरिकों से लूटा धन, अरब के शांतिप्रिय अलीबाबा के हाँथ लगा और इस काम में उसकी मदद की जोरो लड़की मरजीना ने ... अल्लाह के फज़ल से काफ़िर ही काफिरों के खिलाफ काम आ जाते हैं |
ये कहानी आज भी ख़त्म नहीं हुई ... आगे भी ख़त्म नहीं होगी ... अल - मज़हब की तासीर ही कुछ ऐसी है
हर हर महादेव
उजड्ड